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________________ जैनसाहित्य और इतिहास पद्धतिपर अथवा वचन-रचनाके ढंगपर यह 'सुख-बोधार्थ' या सरलतासे समझमें आनेके लिए बनाई गई है। इसकी प्रत्येक प्रतिमें इसे 'देवसेनकृता' लिखा भी मिलता है, जिससे यह निश्चय हो जाता है कि यह नयचक्रके कर्त्ता देवसेनकी ही रची हुई है-अन्य किसीकी नहीं । २ लघु नयचक्र । श्रीदेवसेनसूरिका वास्तविक नयचक्र यही है । इसके साथ जो ' लघु' विशेषण लगाया गया है वह दूसरे बड़े ग्रन्थको देखकर लगा दिया गया है; परन्तु वास्तवमें उस दूसरे ग्रन्थका नाम 'द्रव्यस्वभावप्रकाश' है और उसके कर्ता 'माइल धवल' हैं जैसा कि आगे सिद्ध किया गया है । इसलिए इसका नयचक्रके ही नामसे उल्लेख किया जाना चाहिए। श्वेतम्बराचार्य यशोविजयजी उपाध्यायने अपने 'द्रव्यगुणपर्यय रासा' (गुजराती) में देवसेनके नयचक्रका कई जगह उल्लेख किया है और उक्त रासेके आधारसे ही लिखे गये 'द्रव्यानुयोगतर्कणा' नामक संस्कृत ग्रन्थमें भी उक्त उल्लेखोंका अनुवाद किया गया है। उसमें कहा है कि दिगम्बर देवसेनकृत नयचक्रमें ये नय, उपनय, और दोनों मूल नय भी, इसी प्रकार बतलाये गये हैं और यद्यपि ये दिगम्बरमतानुगत हैं, तथापि सभी सर्वज्ञप्रणीत सदागमोंके अनुकूल हैं, इनमें कोई विसंवाद नहीं है । इस विषयमें दिगम्बर श्वेताम्बर समान-तंत्र हैं । नयाश्चोपनयाश्चैते तथा मूलनयावपि । इत्थमेव समादिष्टा नयचक्रेऽपि तत्कृता ॥ ८ ॥ एते नया उक्तलक्षणाश्च पुनरुपनयास्तथैव द्वौ मूलनयावपि निश्चयेनेत्थममुना प्रकारेणैव नयचक्रेऽपि दिगम्बरदेवसेनकृते शास्त्रे नयचक्रेपि तत्कृता तस्य नयचक्रस्य कृता उत्पादकेन समादिष्टं कथितं । एतावता दिगम्बरमतानुगतनयचक्रग्रन्थपाठपठितनयोपनयमूलनयादिकं सर्वमपि सर्वज्ञप्रणीतसदागमोक्तयुक्तियोजनासमानतंत्रत्वमेवास्ते न किमपि विसंवादितयास्तीति' । उक्त ' तर्कणा' में जो नयोंका स्वरूप दिया है, वह बिलकुल ' नयचक्र' का अनुवाद है और उसे स्वयं ग्रन्थकर्ता भोजसागरने स्वीकार किया है । इससे निश्चय हो जाता है कि उपाध्याय यशोविजयजी और तर्कणाके कर्ता भोजसागर इसी नयचक्रको देवसेनका रचा हुआ समझते थे। १. द्रव्यानुयोगतर्कणा ' अध्याय ८, श्लोक ८, पृष्ठ ११५ ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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