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________________ १५२ जैनसाहित्य और इतिहास दिगम्बर विद्वानोंने उसपर टीकाग्रन्थ भी लिखे थे। उसके बाद स्व० डाक्टर के० बी० पाठक आदिने श्वेताम्बर बतलाया क्योंकि शाकटायन-सूत्रोंमें आवश्यकनियुक्ति, छेद-सूत्र, कालिक-सूत्र आदि श्वेताम्बरमान्य ग्रन्थोंका आदरपूर्वक उल्लेख किया गया है। परन्तु अब यह बिल्कुल निश्चित हो चुका है कि वे इन दोनों सम्प्रदायोंसे पृथक् तीसरे यापनीय सम्प्रदायके थे, जो उक्त दोनों सम्प्रदायोंके बीचकी एक कड़ी था और अब नष्ट हो चुका है । क्यों कि १ विक्रमकी तेरहवीं शताब्दिके मलयगिरि नामक श्वेताम्बराचार्यने नन्दिसूत्रकी टीकामें उन्हें यापनीय यतियोंका अग्रणी लिखा है। २ यापनीय सम्प्रदाय श्वेताम्बरोंके समान स्त्रियोंका उसी भवमें मोक्ष होना और केवलियोंका आहार करना मानता था जो दिगम्बर सम्प्रदायके सिद्धान्तोंसे विरुद्ध है । इन दोनों विषयोंपर शाकटायनका बनाया हुआ 'स्त्रीनिर्वाण-केवलिभुक्ति प्रकरण' नामका एक छोटा-सा ग्रन्थ उपलब्ध हआ है और वह प्रकाशित भी हो चका है। उसमें स्त्रीमुक्तिपर ५५ और केवलिभुक्तिपर ३४ कारिकायें हैं । इनमें वे सब युक्तियाँ दी गई हैं जो इन बातोंको माननेवालोंकी ओरसे दिगम्बरोंके प्रति उपस्थित की जाती हैं । इसका कुछ अंश इस प्रकार हैप्रारम्भ-प्रणिपत्य भुक्तिमुक्तिप्रदममलं धर्ममहतो दिशतः । वक्ष्ये स्त्रीनिर्वाणं केवलिभुक्तिं च संक्षेपात् ॥ १ ॥ अस्ति स्त्रीनिर्वाणं पुंवद्यदविकलहेतुकं स्त्रीपु । न विरुद्धयते हि रत्नत्रयसम्पन्निवतेहेतुः ।। २ ।। रत्नत्रयं विरुद्धं स्त्रीत्वेन यथामरादिभावेन । इति वाङ्मानं नात्र प्रमाणमाप्तागमोऽन्यद्वा ।। ३ ।। अन्त- विग्रहगतिमापन्नाद्यागमवचनं सर्वमेतस्मिन् । मुक्तिं ब्रवीति तस्मादृष्टव्या केवलिनि भुक्तिः ।। ३२ ।। १ शाकटायनाऽपि यापनीययतिग्रामाग्रणी: स्वोपशशब्दानुशासनकृत्तावादी भगवतः स्तुतिमेवमाह ' श्रीवीरममृतं ज्योतिर्नत्वादि सर्ववेधमाम् ।' अत्र च न्यासकृतव्याख्या-सर्ववेधसां सर्वज्ञानां सकलशास्त्रनुगतपरिज्ञानानां आदि प्रभवं प्रथममुत्पत्तिकारणमिति ।-नन्दिसूत्र पृ० २३ २ देखो जैनसाहित्यमंशोधक भाग २, अंक ३।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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