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________________ पण्डितवर आशाधर ४ राजीमती-विप्रलंभ-यह एक खण्ड-काव्य है और स्वोपज्ञटीकासहित है । इसमें राजीमतीके नेमिनाथ-वियोगका कथानक है । यह भी अप्राप्य है । ५ अध्यात्म-रहस्य-योगाभ्यासका आरम्भ करनेवालोंके लिए यह बहुत ही सुगम योगशास्त्रका ग्रन्थ है। इसे उन्होंने अपने पिताके आदेशसे लिखा था । अप्राप्य है। मूलाराधना-टीका-यह शिवार्यकी प्राकृत आराधनाकी टीका है जो कुछ समय पहले शोलापुरसे अपराजितसूरि और अमितगतिकी टीकाओंके साथ प्रकाशित हो चुकी है। जिस प्रतिपरसे वह प्रकाशित हुई है उसके कुछ पृष्ठ खो गये हैं, जिनमें सम्पूर्ण प्रशस्ति रही होगी। ७ इष्टोपदेश-टीका-आचार्य पूज्यपादके सुप्रसिद्ध ग्रन्थकी यह टीका माणिकचंद्र-जैन-ग्रन्थ-मालाके तत्त्वानुशासनादि-संग्रहमें प्रकाशित हो चुकी है। ८ भूपालचतुर्विंशतिका-टीका--भूपालकविके प्रसिद्ध स्तोत्रकी यह टीका भी अबतक नहीं मिली। ९ आराधनासार-टीका-यह आचार्य देवसेनके आराधनासार नामक प्राकृत ग्रंथकी टीका है । अप्राप्य । १० अमरकोष-टीका--- सुप्रसिद्ध कोषकी टीका । अप्राप्य । ११ क्रियाकलाप-बम्बईके ऐ० पन्नालाल सरस्वती-भवनमें इस ग्रंथकी एक नई लिखी हुई अशुद्ध प्रति है, जिसमें ५२ पत्र हैं और जो १९७६ श्लोक प्रमाण है । यह ग्रन्थ प्रभाचन्द्राचार्यके क्रियाकलापके ढंगका है । ग्रन्थमें अन्तप्रशस्ति नहीं है। १ विन्ध्यवर्मा जिसकी गद्दीपर बैठा था, उस अजयवर्माके भाई लक्ष्मीवर्माका यह पौत्र था । २–प्रारम्भके दो पद्य ये हैं जिनेन्द्रमुन्मूलितकर्मबन्धं प्रणम्य सन्मार्गकृतस्वरूपं । अनन्तबोधादिभवं गुणौघं क्रियाकलापं प्रकटं प्रवक्ष्ये ।। १ ॥ योगिध्यानैकगम्यः परमविशददृग्विश्वरूपः सतच्च । स्वान्तस्थे मैव साध्यं तदमलमतयस्तत्पदध्यानबीजं, चित्तस्थैर्य विधातुं तदनवगुणग्रामगाढ़ामराग, तत्पूजाकर्म कर्मच्छिदुरमति यथासूत्रमासूत्रयन्तु ॥ २ ॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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