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________________ १२२ जैनसाहित्य और इतिहास अनुपलब्ध ग्रन्थ शब्दावतार न्यास और जैनेन्द्र न्यास - पूज्यपादका पाणिनि व्याकरणपर 'शब्दावतार' नामका न्यास है और जैनेन्द्रपर स्वोपज्ञ न्यास भी है जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है और जो अभीतक अप्राप्य हैं । वैद्यक ग्रन्थ-शुभचन्द्राचार्यकृत ज्ञानार्णवके पूर्वोद्धृत श्लोकके 'काय' शब्दसे यह बात ध्वनित होती है कि पूज्यपादस्वामीका कोई वैद्यक ग्रन्थ भी था । ___ पूनेके भाण्डारकर रिसर्च इन्टिटयूटमें 'पूज्यपादकृत वैद्यक ' नामका एक ग्रन्थ है। परन्तु वह आधुनिक कनड़ीमें लिखा हुआ कनड़ी भाषाका ग्रन्थ है। उसमें न तो कहीं पूज्यपादका उल्लेख है और न वह उनका बनाया हुआ मालूम होता है । 'वैद्य-सार' नामका एक और ग्रन्थ अभी जैनसिद्धान्तभास्करमें प्रकाशित हुआ है और पूज्यपादका बतलाया गया है परंतु वह निश्चयसे उनका नहीं है। विजयनगरके हरिहरराजाके समयमें एक मंगराज नामके कनड़ी कवि हुए हैं। वि० सं० १४१६ के लगभग उनका अस्तित्व-काल है । स्थावर विषोंकी प्रक्रिया और चिकित्सापर उन्होंने खगेन्द्रमाणदर्पण नामका एक ग्रन्थ लिखा है। वे उसमें आपको पूज्यपादका शिष्य बतलाते हैं और यह भी लिखते हैं कि यह ग्रन्थ पूज्यपादके वैद्यक ग्रन्थसे संगृहीत है। अभी हाल ही शोलापुरसे उग्रदित्याचार्यका 'कल्याणकारक' नामका वैद्यक ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। उसमें भी अनेक जगह 'पूज्यपादेन भाषितः ' कहकर पूज्यपादके वैद्यक ग्रन्थका उल्लेख किया गया है । उग्रादित्य राष्ट्रकुट अमोघवर्षके समयके बतलाये गये हैं; परन्तु हमें इसमें सन्देह है । उसकी प्रशस्तिकी भी बहुत सी बातें सन्देहास्पद हैं । __ हमारी समझमें जब तक ये सब ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हो जाते हैं तब तक इनके विषयमें यह कहना कठिन है कि ये उन्हींके बनाये हुए हैं, या उनका नाम धारण करनेवाले दूसरोंके है। सार-संग्रह-धवला ( वेदनाखंड ) के एक उद्धरणके आधारसे 'सारसंग्रह नामक एक और ग्रन्थके होनेका अनुमान होता है-" तथा सारसंग्रहेऽप्युक्तं १ नं० १०६६, सन् १८८७-९१ की रिपोर्ट !
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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