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________________ जैनसाहित्य और इतिहास होनेसे ' पुष्पाच्चय' और चोरी होनेसे ' पुष्पप्रचय ' होता है । इस सूत्रमें उत् उपसर्गके बाद जो 'चाय' होनेका निषेध किया गया है, वह पाणिनिमें, उसक वार्तिकमें और भाष्यमें भी नहीं है । परन्तु पाणिनिकी काशिकावृत्तिमें ३-३४० सूत्रके व्याख्यानमें है.---' उच्चयस्य प्रतिषेधो वक्तव्यः।' इससे सिद्ध होता है कि काशिकाके कर्ता वामन और जयादित्यने इसे जैनेन्द्रपरसे ही लिया है और चीनी यात्री इत्सिंगने अपने यात्रा-विवरणमें लिखा है कि जयादित्यकी मृत्यु वि० सं० ७१७ में हो चुकी थी अतः जैनेन्द्रव्याकरण वि० सं० ७१७ से भी पहलेका बना हुआ होना चाहिए । २-पाणिनि व्याकरणका सूत्र है-—'शरद्वच्छुनकदीद् भृगुवत्साग्रायणेषु ।' ४-१-१०२ इसके स्थानमें जैनेन्द्रका सूत्र इस प्रकार है-' शरद्वच्छनकदर्भानिशर्मकृष्णरणात् भृगुवत्साग्रायणवृषगणब्राह्मणवसिष्ठे ।' ३-१-१३४ । इसीका अनुकरणकारी सूत्र शाकटायनमें इस तरह का है—'शरद्च्छु नकरणाग्निशर्मकृष्णदर्भाद् भगुवत्सवसिष्ठवृषगणब्राह्मणाग्रायणे' २-४-३६।। इस सूत्रकी अमोघवृत्तिमें 'आमिशर्मायणो वार्षगण्यः । आग्निशर्मिरन्यः।' इस तरह व्याख्या की है। ___ इन सूत्रोंसे यह बात मालूम होती है कि पाणिनिमें ' वार्षगण्य' शब्द सिद्ध नहीं किया गया है जब कि जैनेन्द्रमें किया गया है। 'वापंगण्य' सांख्यकारिकाके कर्ता ईश्वरकृष्णका दूसरा नाम है और सुप्रसिद्ध चीनी विद्वान् डा० टक्कुसुके मतानुसार ईश्वरकृष्ण वि० सं० ५०७ के लगभग विद्यमान् थे । इससे निश्चय हुआ कि जैनेन्द्रव्याकरण ईश्वरकृष्णके बाद-वि० सं० ५०७ के बाद और काशिकासे पहले-वि०सं० ७१७ से पहले किसी समय बना है । ३-जैनेन्द्रका और एक सूत्र है-' गुरूदयाद् भाद्युक्तेऽन्दे' ( ३-२ -२५) शाकटायनने भी इसे अपना २-४-२२४ वाँ सूत्र बना लिया है । हेमचन्द्रने थोड़ा-सा परिवर्तन करके 'उदितगुरो द्युक्तेऽन्दे' (६-२-२५) १ ' हस्तादेये ' हस्तेनादानेऽनुदि वाचि चित्रो घन भवत्यस्तेये । पुष्पप्रचायः । हस्ता. देय इति किं ? पुष्पप्रचयं करोति तरुशिखरे । अनुदीति कि ? फलोच्चयः । अस्तेय इति किं ? फलप्रचयं करोति चौर्येण ( शब्दार्णव-चन्द्रिका पृष्ठ ५६ ) २ पाणिनिका मूत्र इस प्रकार हैं-' हस्तादाने चेरस्तेये ' ( ३-३-४० )
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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