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________________ ११४ जैनसाहित्य और इतिहास नागचन्द्र नामके दो विद्वान् हो गये हैं, एक पम्प रामायणके कर्ता नागचन्द्र जिनका दूसरा नाम अभिनव पम्प था, और दूसरे लब्धिसारटीकाके कर्ता नागचन्द्र । पहले गृहस्थ थे और दूसरे मुनि । अभिनव पम्पके गुरुका नाम बालचन्द्र था जो मेघचन्द्र के सहाध्यायी थे और दूसरे स्वयं बालचन्द्र के शिष्य थे। इन दूसरे नागचन्द्रके शिष्य हरिचन्द्रके लिए यह वृत्ति बनाई गई है। इन्हें जो ‘राद्धान्ततोयनिधिवृद्धिकर' विशेषण दिया है उससे मालूम होता है, कि ये सिद्धान्तचक्रवर्ती या सिद्धान्त शास्त्रोंके ज्ञाता या टीकाकार होंगे । २-शब्दार्णव-प्रक्रिया । यह जैनेन्द्र प्रक्रियाके नामसे छपी है; परन्तु वास्तवमें इसका नाम शब्दार्णव-प्रक्रिया ही होगा। हमें इसकी कोई हस्तलिखित प्रति नहीं मिल सकी। जिस तरह अभयनन्दिकी वृत्तिके बाद उसीके आधारसे प्रक्रियारूप पंचवस्तु टीका बनी है, उसी प्रकार सोमदेवकी शब्दार्णव-चन्द्रिकाके बाद उसीके आधारसे यह प्रक्रिया बनी है। प्रकाशकोंने इसके कर्ताका नाम गुणनन्दि प्रकट किया है; परन्तु जान पड़ता है कि इसके अन्तिम श्लोकमें गुणनन्दिका नाम देखकर ही उन्होंने भ्रमवश इसके कर्त्ताका नाम गुणनन्दि समझ लिया है। १ छपी हुई प्रतिके अन्तमें “ इति प्रक्रियावतारे कृद्विधि: समाप्त: । समाप्तेयं प्रक्रिया।" इस तरह छपा है । इससे भी इसका नाम जैनेन्द्र-प्रक्रिया नहीं जान पड़ता। २ सत्संधिं दधते समासमभितः ख्यातार्थनामोन्नतं नितिं बहुतद्धितं कृतमिहाख्यातं यशःशालिनम् । सैषा श्रीगुणनन्दितानितवपुः शब्दार्णवं निर्णय नावत्याश्रयतां विविक्षुमनसां साक्षात्स्वयं प्रक्रिया ॥ १ दुरितमदेभनिशुंभकुम्भस्थलभेदनक्षमोग्रनखैः । राजन्मृगाधिराजो गुणनन्दी भुवि चिरं जीयात् ॥ २ सन्मार्गे सकलसुखप्रियकरे संज्ञापिते सदने दिग्वासस्सुचरित्रवानमलकः कांतो विवेकी प्रियः । सोयं यः श्रुतकीर्तिदेवयतिपो भट्टारकोत्तंसको रंरम्यान्मम मानसे कविपतिः सद्राजहंसश्चिरम् ॥ ३
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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