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________________ जनसाहित्य और इतहास मेघचन्द्रको पूज्यपादके समान व्याकरणका ज्ञाता बतलाया है। इससे पूज्यपादका वैयाकरण होना सिद्ध है। ये मेघचन्द्र आचारसारके कर्ता वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तिके गुरु थे और इनका स्वर्गवास शक संवत् १०३७ ( वि० सं० ११७२ ) में हुआ था। __ अनगारधर्मामृतटीकाकी प्रशस्तिमें (वि० सं० १३०० ) पण्डित आशाधरजीने लिखा है कि मैंने जैन न्याय और जैनेन्द्र व्याकरणशास्त्र पण्डित महावीरसे धारा नगरीमें पढ़े-" धारायामपठजिनप्रमितिवाक्शास्त्रे महावीरतः । ” और 'जिनप्रमितिवाक्शास्त्रे' की टीकामें लिखा है-" जैनेन्द्र प्रमाणशास्त्रं जैनेन्द्रव्याकरणं च । ” सागार और अनगारधर्मामृतटीकामें उन्होंने कई जगह व्याकरणके सूत्र दिये हैं और वे देवनन्दिकृत इसी जैनेन्द्रव्याकरणके हैं ।। वृत्तविलास ( वि० सं० १२१७) ने अपने 'धर्मपरीक्षा' नामक कनड़ी काव्यकी प्रशस्तिमें पूज्यपाद आचार्यकी बड़ी प्रशंसा लिखी है और वे जैनेन्द्रव्याकरणके रचयिता थे, इस बातका स्पष्ट उल्लेख किया है । साथ ही उनकी अन्यान्य रचनाओंका भी परिचय दिया है। लिखा है कि व्रतीन्द्र पूज्यपादने-जिनके चरणकमलोंकी अनेक भव्य आराधना करते थे और जो विश्व-भरकी विद्याओंके शृंगार थे-प्रकाशमान् जैनेन्द्र व्याकरणकी रचना की, पाणिनिकी टीका लिखी, टिप्पणद्वारा ( सर्वार्थसिद्धि नामक तत्त्वार्थसूत्रटीका) तत्त्वार्थका अर्थावबोधन किया और पृथ्वीकी रक्षाके लिए यंत्र-मंत्रादि शास्त्रकी रचना की। आचार्य शुभचन्द्रने ज्ञानार्णवके प्रारंभमें देवनन्दिकी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि जिनकी वाणी देहधारियोंके शरीर वचन और मनसम्बन्धी मैलको मिटा १-सिद्धान्ते जिनवीरसेनसदृशः शास्त्राब्जिनीभास्करः, षट्रतर्केष्वकलंकदेवविबुधः साक्षादयं भूतले । सर्वव्याकरणे विपश्चिदधिपः श्रीपूज्यपादः स्वयं, विद्योत्तममेघचन्द्रमुनिपो वादीभपञ्चाननः ।। २-भरदि जैनेन्द्रभासुरं एनल ओरेदं पाणिनीयक्के टीकुं, बरेदं तत्त्वार्थमं टिप्पणदिन् अरिपिदं यंत्रमंत्रादिशास्त्रोत्करमं भूरक्षणार्थ विरचिसि जसमुं ताळिदिदंविश्वविद्या-भरणं भव्यालियाराधितपदकमलं पूज्यपादं व्रतीन्द्रम् ॥"
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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