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________________ सोमदेवसूरिका नीतिवाक्यामृत ७५ चूडामणेः श्रीमदरिकेसरिणः प्रथमपुत्रस्य श्रीमद्वद्यगराजस्य लक्ष्मीप्रवर्धमानवसुधारायां गङ्गधारायां विनिर्मापितमिदं काव्यमिति ।” अर्थात् चैत्र सुदी १३, शकसंवत् ८८१ ( विक्रम संवत् १०३६ ) को जिस समय श्रीकृष्णराजदेव पाण्ड्य सिंहल, चोल, चेर आदि राजाओंको जीत कर मेलपाटी नामक सेना-शिविरमें थे उस समय उनके चरणकमलोपजीवी सामन्त बदिगकी-जो चालुक्यवंशीय अरिकेसरीके प्रथम पुत्र थे-राजधानी गंगधारामें यह काव्य समाप्त हुआ। कृष्णराजदेव ( तृतीय कृष्ण ) राष्ट्रकुट या राठौर वंशके महाराजा थे और इनका दूसरा नाम अकालवर्ष था। ये अमोघवर्ष तृतीयके पुत्र थे । इनका राज्यकाल कमसे कम ८६७ से ८९४ तक प्रायः निश्चित है । ये दक्षिणके सार्वभौमराजा थे और बड़े प्रतापी थे । इनके अधीन अनेक माण्डलिक या करद राज्य थे । कृष्णराजने-जैसा कि सोमदेवसूरिने लिखा है—सिंहल, चोल, पाण्ड्य और चेर राजाओंको युद्ध में पराजित किया था । इनके समयमें कनड़ी भाषाका सुप्रसिद्ध कवि पोन्न हुआ है जो जैन था और जिसने शान्तिपुराण नामक श्रेष्ठ ग्रन्थकी रचना की है । महाराज कृष्णराज देवके दरबारसे उसे 'उभयभाषाकविचक्रवर्ती' की उपाधि मिली थी। राष्ट्रकूटोंके समयमें दक्षिणका चालुक्यवंश ( सोलंकी ) हतप्रभ हो गया था । क्योंकि इस वंशका सार्वभौमत्व राष्ट्रकूटोंने छीन लिया था । अतएव जब तक राष्ट्रकूट सार्वभौम रहे तब तक चालुक्य उनके आज्ञाकारी सामन्त या माण्डलिक राजा बनकर रहे । जान पड़ता है कि अरिकेसरिका पुत्र बद्दिग ऐसा ही एक सामन्तराजा था जिसकी गंगधारा नामक राजधानीमें यशस्तिलककी रचना. समाप्त हुई है। चालुक्योंकी एक शाखा ‘जोल' नामक प्रान्तपर राज्य करती थी जिसका एक भाग इस समयके धारवाड़ जिलेमें आता है और श्रीयुक्त आर० नरसिंहाचार्यके मतसे चालुक्य अरिकेसरीकी राजधानी 'पुलगेरी' में थी जो कि इस समय 'लक्ष्मेश्वर के नामसे प्रसिद्ध है । गंगधारा भी शायद वही है । १ मुद्रित पुस्तकमें ' श्रीमद्वागराजप्रवर्धमान-' पाठ है ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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