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________________ जैन रत्नाकर ४१ राजेमती रे, द्रौपदी कौसल्या जान । मृगावती सुलसाँ सीता'ने वन्दिये रे. सुभद्राजी गुणखानक । सतियाँ ने वन्दिये रे ॥ १२ ॥ सेवा कुन्था दमयन्ती ने वन्दिये रे, चेलणा प्रभावती जान। पद्मावती ने पोह उठ चन्दू भाव सूं रे, शील तणी गुण खानक ॥ स० ॥ १३ ॥ जम्बु भरत आरज मरुधर देश माँ रे, प्रगट्या पूज्य दयाल । श्री भिक्षु भारीमाल राय ऋषि जयगणी रे, मघवा माणक डाल। कालू गणी वन्दिये रे ॥ १४ ॥ पाट नवमें आज उजागर दीपता रे, तुलसीराम गणिन्द। च्यार तीरथना नाथ प्रभुजी शोभता रे, जिम ताराँ बिच चन्द। गणेश्वर वन्दिये रे । शासन का शिणगार ॥ग० ॥ १५ ॥ जुग प्रकार छतीस गुणाधर दीपता रे, अरिहन्त जेम अवतार । सोले उपमा शोभै आप में रे, नाम लियाँ निस्तार ॥ ग० ॥ -
SR No.010292
Book TitleJain Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshrichand J Sethia
PublisherKeshrichand J Sethia
Publication Year
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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