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________________ जैन रत्नाकर - - कलुषित-हृदय कलह-दिलदूषित, तास करन प्रतिकारो रे ॥ श्रा० ॥३॥ मुक्ति-महलनी पञ्चम पेड़ी, नेड़ी निजर निहारो रे ॥ श्रा० ॥ वोर विभू सन्तान स्थान तुमें, ___ कातरता न सिकारो रे ॥ श्रा० ॥४॥ निरय तिरय गति निगम निरोधो, न्यन्तर असुर विसारो रे ॥ श्रा०॥ ज्योतिषि ऊपर वैमानिक सुर, देखो तास दुवारो रे ॥ श्रा० ॥ ५ ॥ धन्य जघन्य समय शिव सम्भव, त्रिण भव में निस्तारो रे॥श्रा०॥ आत्मानन्द अमन्द अपूरव, व्रत वैभव विस्तारो रे ॥ श्रा० ॥६॥ त्याग नाग नहिं सिंह बाघ नहिं, माग नहीं भयवारो रे ॥ श्रा० ॥ हृदय चिराग भाग जागरणा, क्यों कम्पै दिल थारो रे ॥ श्रा० ॥७॥
SR No.010292
Book TitleJain Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshrichand J Sethia
PublisherKeshrichand J Sethia
Publication Year
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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