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________________ जैन रमाकर मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि मत्थएण मंगलकारी धर्मदेव ज्ञानवंत चित्त एहवा गुरु महाराज वलि मस्तके करी प्रसन्नकारी नौ सेवा करूं छं वंदामि । वंदना करूं छु। पांच परमेष्ठियों की वन्दना करने की विधि इस पाठ में बतलाई गई है। वन्दना करने वाला वन्दना करते समय अपने दोनों हाथों को जोड़ कर तीन वार दांयी ओर से बांयी ओर प्रदक्षिणा करता है। वन्दना करता हूं। नमस्कार करता हूं। सत्कार करता हूं। सम्मान करता हूं। आप कल्याणकारी हैं। मंगल करने वाले हैं। दैवत अर्थात् देवता के समान हैं। चैत्य-ज्ञानमय हैं अथवा चित्त को आह्लादित करने वाले हैं। मैं आपकी पर्युपासन अर्थात् सेवा करता हूं और मस्तक से आपकी वन्दना करता हूं। सामायिक प्रतिज्ञा (सामायिक लेवानी विधि) करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं हू करूं छू हे भगवन् समता रूप सामायिक सावद्य पाप सहित व्यापारनो पच्चक्खामि जाव नियमं (मुहुत्तं एग) त्याग करूं छू यावत् नियम सामायिक नो काल छै तावत् ( मुहूर्त एक) काल पर्यन्त सामायिक नो
SR No.010292
Book TitleJain Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshrichand J Sethia
PublisherKeshrichand J Sethia
Publication Year
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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