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________________ रजाकी पत्नी ' हरिकांताने ' दो पुत्र प्रसवे | उन जगतप्रसिद्ध बालकोंके 6 नाम नल ' और ' नील ' थे । राजा आदित्यरजाने अपने महान बलवान पुत्र बालीको राज्य देकर दीक्षा ग्रहण की और तपश्चरण कर मोक्षको प्राप्त किया । वालीने अपने ही समान सम्यग्दृष्टि न्यायी, दयालु और महान: पराक्रमी, अपनेः अनुज सुग्रीवको युवराज बनाया अपने राज्यका उत्तराधिकारी बनाया | एकवार रावण अपने अंतःपुर सहित हाथीपर बैठकर, मेरुरिपर चैत्यकी वंदना करनेको गया । पीछेसे मेघप्रभ नामक खेचरका पुत्र खर कारणवश लंका में आया । उसने सूर्पणखाको देखा । वह उसका अनुरागी बन गया । वह भी उससे अनुराग करने लगी । खर अपने ऊपर अनुराग करनेवाली सूर्पणखाको, हरण करके पाताल - लंका में गया और आदित्यरजाके पुत्र चंद्रोदरसे वहाँका राज्य छीन स्वतः वहाँका राजा बन बैठा । रावण मेरुगिरिसे लौटकर लंकामें आया, वहाँ उसने चंद्रनखा - सूर्पणखाके हरणका समाचार सुना । इससे उसको अतीव क्रोध हो आया, और हाथीका शिकार करने जाते वक्त जैसे केसरीसिंह विक्राल बन जाता है वैसी ही विक्राल मूर्ति धारणकर रावण, खरका नाश करनेके लिए जानेको उद्यत हुआ। तब मंदोदरीने आकर रावण से कहा:" हे मानद ! - सन्माननीय ! इतना क्रोध न करो, जग
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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