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________________ ४५६ जैन रामायण दसवाँ सर्ग। जीव इन्द्रायुध, तीन शुभ भव करनेके बाद तीर्थंकर गोत्र बाँधेगा और तीर्थंकर होगा । उस समय तू वैजयंत विमानमेंसे चवकर, उसका गणधर बनेगा । अन्तमें तुम दोनों ही मोक्षमें जाओगे । लक्ष्मणका जीव-जो मेघरथ नामक तेरा पुत्र होगा-शुभ गतियाँ पाकर, पुष्करवर द्वीपके पूर्व विदेइके आभूषण रूप रत्नचित्रा नगरीमें चक्रवर्ती होगा। चक्रवर्तीकी संपत्तिका उपभोग कर, दीक्षा ले, अनुक्रमसे तीर्थकर होगा और निर्वाण प्राप्त करेगा। नरकमें शंबूक, रावण और लक्ष्मणका दुःख । इस प्रकार वृतान्त सुन, पूर्वस्नेहके कारण सीतेन्द्र -लक्ष्मण जहाँ दुःख भोग रहे थे वहाँ-नरकमें गये । वहाँ उन्होंने देखा-शंबूक और रावण सिंहादिका रूपधर क्रोध सहित लक्ष्मणसे युद्धकर रहे हैं । फिर परमाधार्मिकोंने क्रोध पूर्वक उनको, यह कहकर कि, तुम युद्ध करनेवालोंको इसमें कुछ दुःख नहीं होगा, अग्निकुंडमें डाल दिया। वहाँ वे तीनों जलने लगे । उनका शरीर सारा जल गया। वे उच्चस्तरसे पुकारने लग रहे थे । उसी समय परमाधामी देवोंने उन्हें बलपूर्वक खींचकर, तैलकी कुंभीमें डाल दिया। वहाँ देह विलीन होनेपर वे भट्टीमें डाले गये । उसमें तड़ तड़ करके उनके शरीर फटने लगे । इससे वे बहुतदु:खी हुए।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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