SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४० जैन रामायण दसवाँ सर्ग। मदनांकुशको निज इच्छानुसार वरा । यह देखकर, लक्ष्मणके ढाई सौ पुत्र क्रोध करके युद्ध करनेको तैयार हुए। सुनकर लवणांकुशने कहाः-" उनके साथ कौन युद्ध करेगा ? ( हम नहीं करेंगे) क्योंकि वे भाई हैं, इसलिए अवध्य हैं । जैसे राम लक्ष्मणमें छोटे बड़ेका कुछ भेद नहीं है, वैसे ही हमारेमें भी भेद नहीं होना चाहिए।" लक्ष्मणके पुत्रोंको गुप्तचरोंने जाकर यह बात कही। लक्ष्मणके पुत्र अपने अकृत्य-विचारके लिए निजात्माकी निंदा करने लगे, और वैराग्य प्राप्तकर, माता पिताकी आज्ञा ले महाबल मुनिके पास जाकर दीक्षित होगये । अनंगलवण और मदनांकुश दोनों कन्याओंके साथ लग्न कर बलभद्र और वासुदेवके साथ अयोध्यामें आये ।। ___ भामंडलकी मृत्त्यु। एकवार भामंडल राजा अपने नगरमें, राजमहलोंकी छत पर बैठा हुआ था । बैठे हुए उस शुद्ध बुद्धिवालेके मनमें विचार आयें,-" वैताढयकी दोनों श्रेणियाँ मेरे वशमें हैं । अस्खलित गतिसे मैंने लीला पूर्वक सर्वत्र विहार करके सांसारिक सुखोपभोग किया है । अब दीक्षा ग्रहण कर पूर्ण-वांछित बनूं।" इस प्रकार विचार करते हुए उसके सिरपर आकाशसे विजली गिरी । इससे तत्काल ही वह मर गया और देवकुरुमें जाकर युगलिया उत्पन्न हुआ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy