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________________ ४१८ जैन रामायण नवाँ सर्ग । मात्र पृथ्वीको बाने योग्य रह गया है । जिन शस्त्रोंकी यक्ष रक्षा करते हैं; जो शस्त्र हमेशा: शत्रुओंको नष्ट करते रहे हैं, उन्हीं शस्त्रोंकी आज यह क्या दशा हो गई है ? " ___ इधर लवणके साथ युद्ध करते हुए, रामके शस्त्र निकम्मे हो गये । उसी भाँति अंकुशके साथ युद्ध करते हुए, लक्ष्मणके शस्त्रास्त्र भी निकम्मे हो गये । ___ अंकुशने लक्ष्मणके हृदयमें वज्रके समान बाण मारा । उसके आघातसे लक्ष्मण रथमें ही गिरकर, मूञ्छित हो गये । लक्ष्मणको मूञ्छित देख, विराध घबराया । वह स्थको रणभूमिमेंसे अयोध्याकी तरफ ले चला । चलते हुए लक्ष्मणको चेत आगया । इसलिए वे सरोष बोले:" तूने यह नवीन काम क्या किया ? रामके भाई और दशरथके पुत्रके लिए युद्धभूमिसे चला जाना अनुचित है। इसलिए जहाँ मेरा शत्रु है वहाँ मुझको शीघ्रतासे ले चल । मैं तत्काल ही चक्रद्वारा शत्रुका शिरच्छेद कर दूंगा।" ___ नारदका रामको-लवणांकुशका-हाल बताना। 'लक्ष्मणके ऐसे वचन सुन, विराधने रथको वापिस युद्ध भूमिकी ओर चलाया। रथ रणभूमिमें पहुँचा । खड़ा . रह, खड़ा रह' कहते हुए लक्ष्मणने चक्रको उठाकर घुमाया । घूमता हुआ चक्र घूमते हुए सूर्यका भ्रम कराने लगा घुमाकर लक्ष्मणने वह असवलित गतिवाला चक्र क्रोषपूर्वक अंकुशपर चलाया । आवे हुए चक्रको रोकनेके
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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