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________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण ! ४१३ दश हजार पुरुष उनकी सेनाके आगे आगे मार्गको साफ, करते हुए जाते थे | युद्धकी इच्छा रखनेवाले दोनों वीर क्रमशः अपनी सेनासे दिशाओंको आच्छादित करते हुए अयोध्याके पास जा पहुँचे । - अपने नगरके बाहिर बहुत बड़ी सेना आई जान; राम लक्ष्मणको विस्मय हुआ । दोनों मन ही मन मुस्कराये । लक्ष्मण बोले:-“ आर्य बन्धु रामकी पराक्रमरूपी अनि पतंगी भाँति पड़कर मरनेके लिए कौन आया है ? " तत्पश्चात शत्रुरूपी अंधकार में सूर्य के समान, रामलक्ष्मण सुग्रीवादि वीरों सहित युद्ध करनेके लिए नगरके बाहिर आये । राम, लक्ष्मण और लवण, अंकुशका युद्ध । नारदसे भामंडल ने सीताके समाचार सुने | वह तत्काल ही विमानमें बैठकर, सीताके पास पुंडरीकपुरमें गया। सीताने रोते हुए कहा:--" हे भ्राता ! रामने मेरा त्याग किया है । मेरा त्याग तेरे भानजों के लिए असल हुआ है । इसी लिए वे रामसे युद्ध करनेको गये हैं । " • भामंडल ने कहा :- " रामने रभसवृत्तिसे -बे सोचे समझे तुम्हारा त्याग तो किया ही है; अब अपने पुत्रोंको मारने का दूसरा अविचारी कार्य न कर बैठें; क्योंकि उन्हें खबर नहीं है कि लवण और अंकुश उनक पुत्र हैं । अतः
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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