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________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। ४०७ wwwmmmmmmmmmmmmm तत्पश्चात सीताने उनको, साग्रह प्रार्थना करके अपने पुत्रोंको पढ़ानेके लिए रख लिया। सिद्धार्थने लव और अंकुशको सारी कलाएँ ऐसी कुशलतासे सिखाई कि, वे देवताओंके लिए भी दुर्जय होगये । सारी कलाएँ सीखे उस समयतक वे पूर्ण युवावस्थामें पहुँच गये । उस समय दोनों भ्राता ऐसे शोभते थे मानो वे वसंत और कामदेवही थे। वज्रजंघ और पृथुराजाका युद्ध । वनजंघने अपनी, लक्ष्मीवती रानीके उदरसे जन्मी हुई, शशिचूला नामा कन्या और अन्यान्य बत्तीस कन्याएँ लवणको ब्याहीं । फिर उसने पृथ्वीपुरके राजा पृथुसे उसकी, अमृतवती रानीसे जन्मी हुई कनकमाला नामकी कन्या अंकुशके लिए माँगी । पराक्रमी पृथुने उत्तर दियाः" जिसके वंशका कुछ ठिकाना नहीं है, उसको कन्या कैसे दी जा सकती है ?" ___ सुनकर, वजय बहुत क्रुद्ध हुआ । उसने पृथुपर चदाई की। युद्ध हुआ । युद्धमें वज्रजंघने पृथुके मित्र व्याघ्ररथको बाँध लिया। इस लिए पृथुराजाने अपने मित्र पोवनपुरके पतिको अपनी सहायताके लिए बुलाया। क्योंकि ‘विधुरेषु हि मित्राणि स्मरणीयानि मंत्रवत् ।' (विपत्तिमें मंत्रकी भाँति मित्रोंको भी याद करना
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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