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________________ १४ जैन रामायण प्रथम सर्ग। आदित्यकीर्तिसे उत्पन्न हुए 'सोम' नामक लड़केको उसने पूर्व दिशाका दिग्पाल बनाया । किष्किंधापुरीके राजा 'कालाग्निकी' स्त्री 'श्रीप्रभाके' पुत्र 'यम' नामक राजाको उसने दक्षिण दिशाका दिग्पाल बनाया। मेघपुरके राजा 'मेघरथकी' स्त्री 'वरुणाके' गर्भसे जन्मे हुए वरुण' नामक विद्याधरको उसने पश्चिम दिशाका दिगाल बनाया और कांचनपुरके राजा 'सुरकी' स्त्री — कनकावतीके ' पुत्र 'कुबेर नामक ' विद्याधरको उसने उत्तर दिशाका दिग्पाल किया । इसतरह सर्व सम्पत्ति सहित इन्द्रराजा राज्य करने लगा। 'मैं इन्द्र हूँ। यह मानकर राज्य करनेवाले इन्द्र विद्याधरके बड़प्पनको-जैसे मदगंधी हाथी दूसरे हाथीको नहीं सह सकता है वैसे-लंकापति माली न सह सका; इस लिए वह अपने अतुल पराक्रमी भाइयों, मंत्रियों और भित्रों सहित इन्द्रके साथ युद्ध करनेको रवाना हुआ। " पराक्रमी पुरुषोंको ( युद्ध के सिवा ) कोई दूसरा विचार नहीं सूझता" दूसरे राक्षस वीर भी वानर वीरोंको ले, सिंहों, हाथियों, घोड़ों, महिषों, वराहों और वृषभादि वाहनोंपर बैठ, आकाशमार्गसे चलने लगे । चलते समय गधे, सियार, और सारस आदि उनके दाहिनी ओर थे तो भी वे फलमें वामपनको धारण करते हुए उनके लिए अरिष्ट रूप हुए, उनको अनेक अपशकुन होने लगे,
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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