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________________ सीतापर कलंक। विजय, सुरदेव, मधुमान, पिंगल, शूलधर, काश्यप, काल और क्षेमनामा राजधानीके बड़े बड़े अधिकारी नगरीके यथार्थ वृत्तान्त जानने के लिए नियत थे। वे एक दिन रामके पास आये और वृक्षकी भाँति थर थर काँपने लगे । वे रामको कोई बात नहीं कह सके । क्योंकि राजतेज बड़ा दुःसह होता है। रामने कहा:-" हे नगरीके महान अधिकारियो ! तुम्हें जो कुछ कहना हो वह कहो । तुम एकान्त हितवादी हो, इसलिए अभय हो ।” __रामके अभय वचन सुनकर, वे कुछ स्थिर हुए। उनमें से विजय नामका अधिकारी सबका प्रधान था वह बड़ी सावधानीके साथ इस तरह कहने लगा:-" हे स्वामी ! एक बात है। जिसका कहना बहुत ही आवश्यकीय है । यदि मै न कहूँगा तो स्वामीको ठगनेवाला कहलाऊँगा । मगर वह है बहुत ही दुःश्रव । हे देव ! देवी सीतापर एक अपवाद आया है । वह दुर्घट है तो भी लोग उसको सीतापर घटित करते हैं । नीतिका वचन है कि-जो बात युक्ति पूर्वक घटित होती हो, उसपर विद्वानोंको विश्वास करना चाहिए। लोग कहते हैं कि-रतिक्रीडाकी इच्छासे रावणने सीताका हरण किया । उनको अकेले अपने घरमें रक्खा । सीता बहुत समयतक उसके घरमें रहीं। सीता चाहे रावणसे रक्त रही हो, या विरक्त इससे क्या होता जाता है ?
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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