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________________ सीताको रामचन्द्रका त्यागना। ३८१ शत्रुघ्न रवाना होकर, कुछ दिनकी सफरके बाद, मथुराके पास पहुँचे । नदीके किनारे अपने डेरे डाले । खबर करनेके लिए उन्होंने गुप्तचरोंको भेजा। उन्होंने वापिस आकर, कहा:-" मथुराके पूर्वमें एक कुबेरोधान नाया उचान है। मधु राजा इस समय वहाँ गया हुआ है, और अपनी जयंती रानीके साथ क्रीडा कर रहा है। उसका त्रिशूल इस समय शस्त्रागारमें है। इस लिए उसके साथ युद्ध करनेका यही समय अच्छा है। मथुरापति मधुकी मृत्यु। तत्पश्चात छलके जाननेवाले शत्रुघ्नने, रात्रिको मथुरामें प्रवेश किया और उद्यानमेंसे लौटते हुए मधुका, अपनी सेनाद्वारा, मार्ग रोका । रण आरंभ हुआ। राम रावणके युद्ध में लक्ष्मणने जैसे पहिले खरको मारा था उसी तरह, शत्रुघ्नने मधुके पुत्र लवणको मार डाला। महारथी-श्रेष्ठ मधु पुत्रके वधसे क्रोधित होकर धनुषका आस्फालन करता हुआ शत्रुघ्नसे युद्ध करनेको आगे बढ़ा। युद्धप्रारंभ हुआ। दोनों शस्त्र चलाते थे और परस्परमें शत्रोंको काट देते थे। दोनोंमें, देव और दैत्यकी भाँति बहुत समय तक शस्त्रयुद्ध होता रहा। दशरथके चतुर्थ पुत्र शत्रुघ्नने लक्ष्मणके दिये हुए, समुद्रावर्त धनुषका और अग्निमुख बाणोंका स्मरण किया। स्मरण करते ही वे उनको प्राप्त शेगये। धनुष चढ़ाकर, अग्निमुख बाणोंद्वारा शत्रुघ्न शत्रुपर
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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