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________________ जैन रामायण प्रथम सर्ग। * इन्द्रानी । से, माली, 'सुमाली' और 'माल्यवान ' सीन पुत्र हुए। और किष्किंधीके श्रीमालासे ' आदित्यरजा' और 'ऋक्षरजा' नामक दो पराक्रमी पुत्र हुए। एकवार किष्किंधी मेरुपर्वतपरसे शास्वत अतकी यात्रा करके वापिस लौटा था, उस समय उसने मार्गमें एक मधु नामक पर्वतको देखा। वह गिरि दूसरे मेरुके समान जान पड़ता था । उसके उद्यानमें किष्किंधीने क्रीड़ा की। वहाँ उसे विशेष शान्ति मिली । इस लिए, जैसे कैलाशपर्वतपर कुवेरने नगर बसाया है वैसे ही, किष्किंधी उस पर्वतपर नगर बसाकर, परिवार सहित निवास करने लगा। सुकेशके शक्तिशाली तीनों पुत्रोंको जब ज्ञात हुआ कि उनका राज्य शत्रुने छीन लिया है; तब उनको बहुत क्रोध आया। वे तत्काल ही लंकामें आये; और निर्यात ' का बध कर उन्होंने अपना राज्य वापिस ले लिया। 'वीरोंके साथ किया हुआ वैर चिरकालके बाद भी मृत्युका कारण होता है । ' फिर लंकापुरीमें माली राजा बना और इष्किधीके कहनेसे किष्किधामें आदित्यरजा राज्य लगा। .. राजा इन्द्र और राजा मालीका युद्ध । ..." वैताब्य गिरिपर रथनुपुरके राजा सहस्रारकी भार्य चित्तसुंदरी' को मंगलकारी शुभ स्वम आये । किसी देवताका उसके गर्भमें अवतरण हुआ। कुछ काल बाद
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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