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________________ दिन निकलनेके भयसे, क्षोभ उत्पन्न होगया; परन्तु उनके पहुँचते ही सारी सेनाका क्षोभ हर्षमें परिवर्तन होगया। ___ भामंडलने उसी समय विशल्याको लक्ष्मणके पास उतार दिया। उसने लक्ष्मणके शरीरको हाथ लगाया। उसके स्पर्शसे शक्ति तत्काल ही लक्ष्मणके शरीरमेंसे बाहिर निकल गई। जैसे कि यष्टिमेंसे सर्पिणी निकलकर भाग जाती है। शक्ति निकलकर आकाशमें जा रही थी, उसको हनुमानने तत्काल ही उछल कर पकड़ लिया; जैसे कि बाज पक्षी चिड़ियाको पकड़ लेता है। शक्ति बोली:-" मैं तो देवता रूप हूँ। मेरा इसमें कुछ भी दोष नहीं हैं । मैं प्रज्ञप्ति विद्याकी बहिन हूँ। धरणे-- न्द्रने मुझको रावणके हाथ दिया है। विशल्याके पूर्व भवके. तप-तेजको सहन करनेमें मैं असमर्थ हूँ, इसी लिए मैं चली जाती हूँ। मैं तो सेवककी भाँति निरपराधिनी हूँ। इस लिए मुझको छोड़ दो।" __ शक्तिकी बातें सुन, वीर हनुमानने उसको छोड़ दिया। छोड़ते ही वह शक्ति तत्काल ही, लज्जित हुई हो वैसे अन्त ान होगई। विशल्याने फिरसे लक्ष्मणके शरीर पर हाथ फेरा और धीरे धीरे उसपर गोशीर्षचंदनका लेप किया। व्रण रुझ गये। लक्ष्मण निद्रामसे जाग्रत मनुष्यकी भाँति
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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