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________________ ३३१ चूर्ण कर डाला । सुग्रीव आकाशमें उड़ गया । वहाँ से उसने कुंभकर्ण पर एक बहुत बड़ी शिला डाली, जैसे कि पर्वतपर इन्द्र वज्र गिराता है। कुंभकर्णने उस शिलाको, गदा प्रहारसे चूर चूर कर दिया । शिलाके चूरेके कारण - जो कि कुंभकर्ण के पाससे उड़ा था - कुंभकर्ण ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो वह वानरसेनाको ढक देनेके लिए रजोदृष्टि कर रहा है । फिर वालीके अनुज बंधु सुग्रीवने उस पर तड़ तड़ करता हुआ, विद्युत् अत्र चलाया । उसको विफल करनेके लिए कुंभकर्णने कई अस्त्र चलाये; परन्तु कुछ फल न हुआ । उसने कल्पान्त कालकी भाँति कुंभकर्णपर गिर कर उसको, भूमिपर गिराया और मूर्च्छित कर दिया । रावण वध | रावण के पुत्रों और सुग्रीवका युद्ध । अपने भाई कुंभकर्णको मूच्छित देखकर, रावणको बड़ा भारी क्रोध आया । भ्रकुटीके चढ़नेसे उसका मुख भयंकर हो गया । वह रणभूमिकी ओर चलता हुआ ऐसा मालूम होने लगा; मानो साक्षात यमराज जा रहा है । उस समय इन्द्रजीतने आकर उसको कहा :" हे पिता आपके सामने, रणस्थलमें खड़े रहनेकी, यम, कुबेर, वरुण और इन्द्रकी भी शक्ति नहीं थी तो फिर ये बिचारे वानर तो कैसे रह सकते हैं ? इस लिए हे देव ! आप
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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