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________________ IMAAAAA ___ उस समय विभीषणने रावणके पास जाकर कहा:-- " हे बन्धु ! क्षणवार शान्त होकर शुभ फल वाली मेरी बातोंका विचार करो। तुमने दोनों लोक-इस लोक और परलोक-का घात करनेवाली बुरी बात, की है । दूसरोंकी स्त्रीका हरण किया है । इस अविचारित कृत्यसे अपना कुल लज्जित हो रहा है। अब रामभद्र अपनी स्त्रीको लेनके लिए यहाँ आये हैं। अतः सीता उनको सौंपदो और उनका आतिथ्य करो। यदि ऐसा नहीं करोगे तो राम दूसरी तरहसे सीताको ले जायँगे और तुम्हारे साथमें तुम्हारे सारे कुलको भी पकड़ लेंगे। साहसगति विद्याधर और खर राक्षसके अंतक-काल-रामलक्ष्मणकी बात तो जाने दो, मगर उनके दूत बनकर आये हुए हनुमानके बलको ही क्या तुमने नहीं देखा है ? इन्द्रसे भी अधिक तुम्हारे पास संपत्ति है । यदि सीताको नहीं छोड़ोगे तो सीता भी जायगी, और संपत्ति भी जायगी। दोनों तरफसे तुमको, भ्रष्ट होना पड़ेगा। विभीषणके ऐसे वचन सुनकर इन्द्रजीत बोला:" अहो विभीषण काका ! तुम तो जन्मे जबसे ही डरपोक हो । तुमने सारे कुलको दूषित किया है। तुम कदापि मेरे पिताके सहोदर नहीं हो सकते । अहो मूर्ख ! इन्द्रको भी जीतनेवाले, सारी संपत्ति के नायक मेरे पिताके लिए तुम ऐसी शंका करते हो इससे जान पड़ता है कि, तुम.
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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