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________________ हनुमानका सीताकी खबर लाना । ३१३ उसको मेरे पिताने वरुणके जेलखानेमेंसे छुड़ाया था । उसके बाद तूने मुझको अपनी रक्षा करनेके लिए बुलाया था और मैंने वरुणके पुत्रोंके हाथोंसे तुझको बचाया था । मगर इस समय तू पापमें रत हो रहा है, इस लिए रक्षा करने के योग्य नहीं है । इतना ही नहीं है परस्त्री - हर्ता तेरे समान पुरुषोंसे बात करनेमें भी पाप लगता है । हे रावण ! अकेले लक्ष्मणके हाथोंसे तेरी रक्षा करनेवाला कोई पुरुष तेरे परिवार में नहीं है, फिर उनके ज्येष्ठ भ्राता रामसे बचानेवाले की तो बात ही क्या है ?" Hr 100 AC हनुमानकी बातें सुन, रावणको बहुत क्रोध आया । कुटि चढ़ने से उसका लिलाट भयंकर दिखाई देने लगा । ओष्ठ चबाता हुआ वह बोला :- "रे वानर ! एक तो तूने मेरे शत्रुका पक्ष लिया है; दूसरे मेरे सामने ऐसे कटु और उद्धत शब्द बोला है, इस लिए यही इच्छा होती है कि तू मार दिया जाय । मगर तुझे अपने जीवनसे ऐसा वैराग्य क्यों हो गया है ? रे वानर ! कुष्ट रोगसे जिसका शरीर विशीर्ण होगया हो, ऐसा व्यक्ति यदि मरना चाहता है, तो भी हत्याके भयसे कोई उसको नहीं मारता है; तो तुझ दूतको-जो अवध्य होता है-मारकर कौन हत्या ले ? मगर रे अधम ! सिरको मुँडा, गधेपर चढ़ा, तुझको सारे नगरमें, लंकाकी प्रत्येक गलीमें, तुझपर तिरस्कार करते हुए लोग समूहमें, अवश्यमेव फिरवाऊँगा । "
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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