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________________ हनुमानका सीताकी खबर लाना । कीर्तिको घबरा दिया और उसके शस्त्र, रथ और सार-थिको भग्न कर उसको पकड़ लिया । 1 तत्पश्चात हनुनानने महेन्द्र राजाको नमस्कार कर, कहा:"मैं आपका भानजा और अंजना सतीका पुत्र हूँ । मैं रामकी आज्ञा से सीताकी शोध करनेको लंकाकी ओर जा रहा था । मार्ग में चलते हुए मुझे आपका नगर नजर आया; उसी समय, आपने मेरी निरपराधिनी माताको निकाल दिया था, वह बात याद आगई, जिससे क्रोष उत्पन्न हो आया और मैं युद्ध करनेको प्रवृत्त हो गया । मुझको क्षमा कीजिए । अब मैं स्वामीका कार्य करने को जा रहा हूँ । आप भी मेरे स्वामी रामके पास जाइए। " अपने वीर शिरोमणि भानजेका आलिंगन कर, महेन्द्र ने कहा :- " पहिले मैंने लोगों के मुखसे तेरे पराक्रमी होने की बातें सुनी थीं । आज भाग्यके योग्यसे, मैंने अपने पराक्रमी भानजेको निज आँखों से देखा है । अब तू शीघ्र ही अपने स्वामीका कार्य साधन करनेके लिए जा । तेरा मार्ग कल्याणकारी हो । " हनुमान लंकाकी ओर चले । राजा महेन्द्र भी अपनी सेना लेकर रामके पास गया । गंधर्व राजाकी कन्याओंसे हनुमानकी भेट | आकाश मार्ग से जाते हुए हनुमान दधिमुख नामा द्वीपमें पहुँचे । वहाँ उन्होंने दो महा मुनियोंको काउ सग्ग ध्यानमें निमग्न देखा । उनके पासहीमें उन्होंने तीन २९५
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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