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________________ २९२ जैन रामायण छठा सर्ग। यदि उसकी अवज्ञा करेगा तो वह तत्काल ही तुम्हारे पास चला आयगा।" __ वृद्ध कपियोंकी सलाहसे राम सम्मत हुए। इसलिए श्रीभूतिको कह कर सुग्रीवने हनुमानको बुलाया। सूर्यके समान तेजवाले हनुमानने, तत्काल ही वहाँ आकर, सुग्रीव आदिसे परिपूर्ण सभामं बैठे हुए रामको प्रणाम किया । सुग्रीवने रामसे कहा:--" एवनंजयके विनयी पुत्र हनुमान, विपत्तिके समय हमारे परम बन्धु हैं। विद्याधरोंमें इनकी बराबरी करनेवाला एक भी नहीं है । इसलिए सीताकी शोध करनेके लिए इन्हींको आज्ञा दीजिए।" हनुमानने कहा:--" मेरे समान अनेक विद्याधर हैं। परन्तु राजा सुग्रीव मुझसे विशेष स्नेह रखते हैं, इसी लिए. ये ऐसा कहते हैं। __गव गवाक्ष, गवया, शरभ, गंधमादन, नील, द्विविद, मैंद, जामवान, अंगद और नल आदि अनेक विद्याधर यहाँ उपस्थित हैं; मैं भी उन्हींकी संख्याको पूरी करनेके लिए एक हूँ। यदि आपकी आज्ञा हो, तो राक्षस द्वीप सहित लंकाको उठाकर यहाँ लाऊँ और आज्ञा हो तो वन्धुओं सहित रावणको बाँधकर यहाँ ले आऊँ ?" राम बोले:-" हे वीर हनुमान ! तुझमें सब कुछ करने की शक्ति है । मगर अभी तो तू सीर्फ इतना ही करना कि.
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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