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________________ २८८ जैन रामायण छठा सर्ग । wroommmmmm. . .wm wwwmanvroin.rammar जान पड़ता है कि, तू स्वीकृत बातको भी भूल गया है। अब सीताकी शोध करनेको उद्यत हो; नहीं तो साहस गतिवाले मार्गको जा । वह रस्ता अब तक संकुचित नहीं हुआ है।" __ लक्ष्मणके वचन सुन, सुग्रीव उनके चरणमें गिर गया औरै बोला:--" हे स्वामी ! मेरे प्रमादको सहन करो-मुझे क्षमा करा-और मुझ पर प्रसन्न होओ। क्योंकि आप मेरे प्रभु हो।" इस प्रकार लक्ष्मणकी आराधना कर, लक्ष्मणके पीछे पीछे सुग्रीव रामके पास आया; और भक्ति सहित उनको प्रणाम किया। फिर सुग्रीवने अपने सैनिकोंको आज्ञा दी: "हे सैनिको ! तुम पराक्रमी हो और तुम सर्वत्र अस्खलित गति हो-सब जगह तुम जा सकते हो । इस लिए सब जगह जाकर सीताकी शोध करो।" __ इस प्रकारकी आज्ञा सुन सुग्रीवके सुभट, सब द्वीपोंमें, पर्वतोंमें, वनोंमें, समुद्रोंमें और गुफाओंमें सीताकी शोध करने लगे। __ रावण सीताको ले गया इसके समाचार मिलना। _सीताहरणके समाचार सुन, भामंडल रामचंद्रके पास आया, और अत्यंत दुःखी होकर वहीं रहा । अपने स्वामीके दुःखसे दुःखी विराध बहुत बड़ी सेना लेकर वहाँ आया, और पुराने प्यादेकी तरह वह भी रामकी सेवा करता हुआ, वहीं रहा।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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