SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हनुमानका सीताकी खबर लाना। २६९ जानकीको कहीं भी नहीं देखा। यदि तुमने उसको कहीं देखा हो, तो बताओ। भूतों और शिकारी प्राणीयोंसे पूर्ण इस भयंकर वनमें सीताको अकेली छोड़कर मैं लक्ष्मणके पास गया और हजारों राक्षस सुभटोंके बीचमें, लक्ष्मणको भी अकेला छोड़कर वापिस चला आया। ___ हाय ! मुझ दुर्बुद्धिकी वह कैसी बुद्धि थी! हे प्रिये! हे सिता ! मैंने तुझको इस अरण्यमें अकेली कैसे छोड़ी? हे वत्स ! हे लक्ष्मण ! तुझको इस रण-संकटमें अकेला छोड़कर मैं वापिस कैसे चला आया?" __ इस प्रकार बोलते हुए राम मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिरगये । उस समय उनके दुःखसे दुखी हो पशुपक्षी भी आक्रंदन करने लगे और उन महावीरको देखने लगे। __लक्ष्मण बोले:-" हे आर्य ! आप यह क्या कर रहे हैं ? यह आपका अनुज लक्ष्मण सारे शत्रुओंको जीतकर आपके पास आया है।" लक्ष्मणके वचन सुनते ही राम सचेत होगये; जैसे कि अमृतसिंचनसे मरणासन्न सचेत हो जाता है। उन्होंने आँखें खोली । लक्ष्मणको सामने खड़े देखा; उनको गलेसे लगा लिया। लक्ष्मणने आँखोंमें जल भरकर कहा:-" हे आर्य ! जानकीको हरनेहीके लिए किसीने सिंहनाद किया था। मगर कुछ चिन्ता नहीं । मैं उस दुष्टके प्राणों सहित जान
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy