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________________ २५० जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग 1 लेनेके लिए यहाँ आया है । इस उद्यानमें इन मुनि - - वेषधारी सुभटोंने अपने स्थानमें, गुप्तरीत्या शस्त्र दबा रक्खे हैं; आप स्वयं चलकर इसकी जाँच करसकते हैं ।" पालक के कथनानुसार राजाने मुनियोंके स्थानको खुद-वाया । वहाँ राजाने विचित्र जातिके शस्त्र दबे हुए देखे; इससे उसको बहुत दुःख हुआ । फिर दंडकने विना ही विचारे पालकको आज्ञा दी: " हे मंत्री ! तुमने यह जान लिया सो बहुत अच्छा हुआ । मैं तो तुम्हारे से ही नेत्रवाला हूँ । अब इस दुर्मति स्कंदकको जो योग्य दंड, हो वह दो; क्योंकि तुम सब कुछ जानते हो । हे महामती ! इस विषय में अब दुबारा मुझको मत पूछना । " इस प्रकार आज्ञा मिलते ही पालकने, मनुष्यों को पीलनेका एक यंत्र बनवाया, उसको लेजाकर उद्यानमें रक्खा और स्कंदकाचार्य के देखते हुए उसने एक एक मुनिको पिलवाना प्रारंभ किया । प्रत्येक मुनिको पिलते समय देशना देकर स्कंद - चार्यने सम्यक प्रकार से आराधना कराई । सब परिवार पिल चुका । अन्तमें एक बाल मुनि रहे । वे जब मंत्र पास छाये गये तब स्कंदकाचार्यको बहुत करुणा आई; अतः उन्होंने पालकसे कहा: “पहिले मुझको पीठ; जिससे
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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