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________________ साताहरण। २४७ उस समय देवताओंने वहाँ रत्नोंकी और सुगंधित जलकी. दृष्टि की। ___ उस समय कंबूद्वीपका रत्नजटि और दो देवता वहाँ आये । उन्होंने प्रसन्न होकर अश्व सहित रामको एक रख दिया। सुगंधित जलकी दृष्टिकी सुगंधसे 'गंध' नामा कोई रोगी पक्षी-जो वहाँ रहता था-वृक्षसे उतर कर नीचे आया। मुनिके दर्शन करते ही उसको जातिस्मरण ज्ञान हो गया, इससे वह मूञ्छित होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा। सीताने उसपर जल छिड़का; इससे थोड़ी देर बाद वह चेतमें आकर मुनिके चरणोंमें गिरा । मुनिको स्पर्शीषध नामा लब्धि प्राप्त थी, इस लिए मुनिके चरणोंका स्पर्श होते ही वह नौरोग हो गया। उसके पंख स्वर्णतुल्य हो गये; वे चंचू-पक्षीका भ्रम कराने लगे। चरण पद्मराग मणिके समान होगये और सारा शरीर अनेक प्रकारका प्रभा वाला हो गया। उसके मस्तक पर रत्नाकुरकी श्रेणीके समान जटा दिखाई देने लगी; इस कारण उस पक्षीका नाम उसी समयसे जटायु पड़ गया। उस वक्त रामने मुनिसे पूछा:-" गीध पक्षी मांस खानेवाले और मोटी बुद्धिवाले होते हैं, तो भी यह गीध पक्षी आपके चरणोंमें आकर शान्त कैसे हो गया ? हे भगवंत ! पहिले यह पक्षी अत्यंत विरूप था और अब क्षणवारहीमें ऐसा स्वर्ण, रत्नकी कांतिवाला कैसे होगया ?
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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