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________________ सीताहरण । २३९ उसका सत्कार ग्रहण कर राम वहाँसे रवाना हुए। उस समय लक्ष्मणने कहा:-" वापिस लौटूंगा, वन तुम्हारी पुत्रीके साथ ब्याह करूँगा।" . रामका दो मुनियोंका उपसर्म निवारण करना। राम वहाँसे रात्रिके अन्त भाममें रवाना होकर, सायंकालको, वंशशैल नामा गिरिकी तलहटीमें बसे हुए 'वंशस्थल ' नामा नगर के पास जा पहुंचे। वहाँ उन्होंने वहाँके राजाको और अन्य सारे पुरवा'सियोंको भयभीत देखा । रामने एक पुरुषसे उनके भयका कारण पूछा । उसने उत्तर दिया:--" तीन दिनसे यहाँ पर्वतपर रातको भयंकर ध्वनि होती है। उसके भयसे सारे लोग रातको अन्यत्र जाकर विश्राम करते हैं, और प्रातः काल ही पुनः यहाँ चले आते हैं । इस भाँति आजकल लोगोंको अतीव दुःख सहना पड़ रहा है।" यह सुनकर लक्ष्मणकी प्रेरणा और कौतुकसे राम उस पर्वतपर चढ़े । वहाँ उन्होंने, कायोत्सर्ग करते हुए दो मुनियोंको देखा। राम, लक्ष्मण और सीताने उनको भक्तिसे वंदना की। तत्पश्चात उनके आगे राम गोकर्णकी दी हुई वीणा बजाने लगे, लक्ष्मण ग्राम और रागसे मनोहर गायन गाने लगे और सीता देवीने अंगहारसे विचित्र ऐसा नृत्य किया।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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