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________________ सीताहरण । २२५ विचार करने लगा-यह माया है, इन्द्रजाल है या कोई गंधर्वपुर है ? वह ऐसा सोच रहा था, इतनेहीमें, सुन्दर वेष धारण कर, मानुषी रूपमें खड़ी हुई, एक यक्षिणी उसके नजर आई । कपिलने उससे पूछा:-" यह नवीन नगरी किसकी है ?" ___ उसने उत्तर दियाः-" गोकर्ण नामा यक्षने राम लक्ष्मण और सीताके लिए यह रामपुरी नामा नवीन नगरी बसाई है । यहाँ दयानिधि राम दीन जनोंको दान देते हैं और जो दुःखी यहाँ आते हैं, वे सब कृतार्थ होकर यहाँसे जाते हैं।" __ यह सुन कपिलने समिधका भारा पृथ्वीपर डाल दिया और उसके चरणोंमें गिरकर उससे पूछा:--" हे भद्रे ! कहो मुझे किस भाँति रामके दर्शन होंगे ?" ___ यक्षिणीने कहा:-" इस नगरके चार द्वार हैं। प्रत्येक द्वारपर, यक्ष द्वारपालकी भाँति खड़े होकर नगरीकी रक्षा करते हैं। इससे अंदर जाना दुर्लभ है । परन्तु इसके पूर्व द्वारके बाहिर एक जिन-चैत्य है; वहाँ जा, श्रावक बन, यथाविधि वंदना कर फिर यदि नगरकी ओर जायगा तो तू नगरमें प्रवेश कर सकेगा।" - उसकी बात सुनकर द्रव्यार्थी-धनका लोभी-कपिल जैन साधुओंके पास गया । उनको वंदना कर उसने
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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