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________________ २१६ जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग । wwwwwwwwwwwwwwws दर वज्रकरणसे गले लगकर मिला । फिर सिंहोदरने, अनुजकी भाँति अपना आधा राज्य रामकी साक्षीसे बज्रकरणको दे दिया। दशांगपुरके राजा वज्रकरणने उज्जयनीके राजा सिंहोदरके पाससे श्रीधराके कुंडल माँगकर विद्युदंगको दिये । वज्रकरणने अपनी आठ कन्याएँ और सामंतों सहित सिंहोदरने अपनी तीनसौ कन्याएँ लक्ष्मणको दी। उस समय लक्ष्मणने उनको कहा:-" अभी इन कन्याओंको तुम अपने ही पास रक्खो; क्योंकि पिताजीने अभी राज्यपर भरतको बिठाया है। इससे जिस समय मैं राज्य गद्दीपर बैट्रॅगा उस समय तुम्हारी कन्याओंका पाणिग्रहणं करूँगा। अभी तो हमको मलयाचलपर जाकर रहना है।" वज्रकरणने और सिंहोदर आदिने ऐसा ही करना स्वीकार किया । फिर रामने सबको विदा किया । वे अपने अपने नगरको गये। लक्ष्मण और कल्याणमालाका मिलन । ' राम रातभर वहीं रहे । दूसरे दिन सवेरे ही वे एक निर्जल प्रदेशमें जा पहुँचे । सीताको वहाँ बहुत तृषा लगी। उनको और रामचंद्रको एक वृक्षके नीचे बिठा, रामकी आज्ञा ले, लक्ष्मण जल लेनेको चले। • आगे चलते हुए अनेक कमलोंसे मंडित, प्रिय मित्रके समान वल्लभ, और आनंदजनक एक सरोवरको उन्होंने
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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