SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग । wrommmmmmmmwww.om इस राजविग्रहको देख कर, मैं भी सकुंटुंब यहाँ भाग आया हूँ । आज यहाँ कई घर जल गये । उनके साथ ही मेरी झोपड़ी भी जल गई । इस लिए मेरी क्रूर स्त्रीने, धनि योंके इन सूने घरों से सामग्री चोर लानेको भेजा है। दैवयोगसे उसके दुर्वचनोंका भी शुभ फल मिला; तुम्हारे समान देवपुरुषके मुझको दर्शन हुए।" उस दरिद्रीने इस भाँति सारा वृत्तान्त रामको कह सुनाया । करुणानिधि रघुवंशी रामने उसको एक रत्न सुवर्णमय सूत्र दिया । फिर उसको रवाना करके राम दशांगपुरके पास गये, और नगर बाहिरके चैत्यमें चंद्रप्रभ, प्रभुको नमस्कार कर वहीं रहे। तत्पश्चात रामकी आज्ञासे लक्ष्मण, दशांगपुरमें वज्रकरणके पास गये। 'अलक्ष्याणां ह्यसौ स्थितिः।' ( अलक्ष्य पुरुषोंकी स्थिति ऐसी ही होती है।) वज्रकरणने उनको आकृतिसे उत्तम पुरुष समझकर कहा:-" हे महाभाग ! मेरे भोजन-आतिथ्यको स्वीकार करो।" ___ लक्ष्मणने उत्तर दिया:-" मेरे प्रभु राम अपनी पत्नी सीता सहित नगरके बाहिर स्थित हैं; उनको पहिले जिमाऊँमा फिर मैं भोजन करूँगा।" वज्रकरणने तत्काल ही, नाना भॉतिके व्यंजनोंवाला
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy