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________________ राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास। १८७ राजाने उसकी ओर देखा।देखा-वह मरणेच्छु मनुष्यकी भाँति पद पद पर गिर पड़ता है। मुखमेंसे राल गिर रही है। दाँत गिर गये हैं; चहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं। भ्रकुटीके केशोंसे नेत्र ढक गये हैं; मांस व रुधिर सूख गये हैं और सारा शरीर धूज रहा है।" · कंचुकीकी ऐसी दशा देखकर, राजाने सोचा-मेरी भी ऐसी स्थिति हो उसके पहिले ही मुझको मोक्षके लिए प्रयत्न कर लेना चाहिए । इस भाँति विचार कर उनका हृदय विषयोन्मुख हो गया । फिर कुछ काल तक संसार पर वैराग्य रखनेवाले चित्तसे उन्होंने गहवास किया। भामंडलका जनक-पुत्र होना प्रकट होना। एकवार चार ज्ञानके धारी सत्यभूति नामा महामुनि संघ सहित अयोध्यामें गये । राजा दशरथ पुत्रादि परिवार सहित मुनिके पास गये और उनको वंदना कर देशना सुननेकी अभिलाषासे उनके निकट बैठे। राजा चंद्रगति अनेक विद्याधर राजाओंको साथ लेकर सीताकी अभिलाषासे तप्त बने हुए, भामंडल सहित, स्थावर्त गिरिक अर्हतों की वंदना करनेको गया हुआ था। उसी समय वह भी आकाश मार्गसे लौटते हुए उधर आ निकला । वह आकाशमैसे, सत्यभूति मुनिको देख, नीचे १ मति, श्रुति, अवधि और मनःपर्यय ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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