SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १७१ mmmmmmmm ले जाकर उन्होंने सोचा-" इसको शिलापर पछाड़ कर मार डालूँ ? मगर नहीं पहिले दुष्टकर्म किया था, उसका फल तो मैंने अनेक भवों तक भोगा है । दैवयोगसे मुनि होकर मैं इतनी ऊँची स्थितिमें पहुँचा हूँ। अब फिर इस बालककी हत्या कर अनन्त भव भ्रमणकतों किस लिए बनें।" यह सोच उन्होंने-देवने-कुंडलादि आभूषणोंसे बालकका शृंगार किया; फिर गिरते हुए नक्षत्रकी भ्रांतिको उत्पन्न करनेवाले उस बालकको ले जाकर उन्होंने स्थनुपुर नगरके नंदनोद्यानमें धीरेसे सुला दिया; जैसे कि शय्यापर सुलाया करते हैं। आकाशमेंसे गिरती हुई वालककी कांतिको चंद्रगतिने देखा । यह क्या हुआ ? सो जाननेके लिए उसके गिर-- नेका अनुसरण कर वह नंदन वनमें गया । वहाँ उसने दिव्य अलंकारोंसे भूषित बालकको देखा । उस अपुत्री विद्याधरपति चंद्रगतिने तत्काल ही उसको पुत्ररूपसे ग्रहण कर लिया; और राजमहलमें आकर उसने उसे अपनी प्रिया पुष्पवतीके अर्पण कर दिया। फिर दरबारमें आकर उसने घोषणा करवा दी कि-' आज देवी पुष्पवतीने एक पुत्ररत्न प्रसव किया है।' राजाने और पुरवासियोंने उसका जन्मोत्सव किया ।। प्रथमके भामंडळ-कांतिसमूह के संबंधसे उसका नाम भाम:
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy