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________________ राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १६१ . यह देखकर हरिकाहन आदि राजाओंको बड़ा बुरा लमा। इसमें उन्होंने अपना अपमान समझा; क्रोधके मारे वे अग्निकी भाँति जल उठे और बोले:-"बिचारे फटे चीथड़ोंवाले एकाकी राजाको इस कैकेयीने वरा है। मगर यदि हमलोग उसको छीन लेंगे तो वह अपने पाससे पुनः कैस ले सकेगा।" इस भाँति आडंबरकं साथ अनक प्रकारका बात कहते हुएं वे सब अपनी अपनी छावनियों में चले गये। उन्होंने युद्धकी तैयारी की । शुभमति राजा दशरथके पक्षमें रहा। वह बड़े उत्साहके साथ युद्धके लिए तैयार हुआ । उस समय एकाकी दशरथने कैकेयीसे कहा:-" प्रिये ! यदि तू सारथी बने, तो मैं इन शत्रुओंको मार डाल।" . - यह सुन कैकयीने, एक बड़े रथकी धुरि पर बैठकर, घोड़ोंकी बागडोर हाथमें ली; क्योंकि वह बुद्धिमती रमणी बहत्तर कलाओंमें प्रवीण थी । राजा दशरथ भी कवच पहिन, भाता गलेमें डाल, धनुष हाथमें ले, रथमें सवार हुआ। यद्यपि दशरथ अकेला था; तो भी वह शत्रुओंको तृणके समान समझने लगा। चतुर कैकेयीने हरिवाहन आदि सब राजाओंके रथोंके सामने, समकालमें, अपना स्थ वेगके साथ खड़ा करना प्रारंभ किया। द्वितीय इन्द्रके
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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