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________________ राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १५७ : अर्द्ध भरत क्षेत्रके राज्यको भोगनेवाले रावणने एकवार सभामें बैठे हुए किसी निमित्तियासे पूछा: " हे निमि-तज्ञ अमर तो देवता ही कहलाते हैं । यह निश्चित है कि, जो संसारी प्राणी है उसका मरण अवश्यमेव होगा, अतः मुझे बताओ कि मेरी मौत स्वतः होगी या दूसरोंके द्वारा जो हो सो स्पष्ट कहो; क्योंकि आप्त पुरुष सदैव स्पष्टवक्ता. ही होते हैं । " निमित्तज्ञने कहा :- "भावी में होनेवाली जनक राजाकी कन्या ' जानकीके कारण भावी में होनेवाले दशरथा राजा पुत्रके हाथसे तुम्हारी मृत्यु होगी । " निमित्तियाके वचन सुनकर विभीषण बोला:- " इस. निमित्तियाका वचन सदैव सत्य ही होता है; मगर इस वार इसकी बातको मैं शीघ्र ही मिथ्या कर दूँगा । क्यों कि कन्या और वर पिता होनेवाले जनक और दशरथः दोनोंको-जो कि इस अनर्थ के कारण हैं- मैं मार डालूँगा;: जिससे अपना कल्याण होगा । उनको मार डालनेसे जब उनके पुत्री पुत्रों की उत्पत्तिही बंध हो जायगी; तब फिर इस निमित्तियाका वचन मिथ्या होगा, इसमें कुछ आश्चर्य की बात नहीं है । " I इस प्रकार विभीषण के ढारस बँधानेवाले वचन सुन-कर रावणने बहुत अच्छा कहा। सभा विसर्जन हुई । रावण अपने महलमें चला गया ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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