SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १४९ वैसे ही उनके रुधिरको पीने लगी; रंक स्त्री जैसे बालू खाती है, वैसे ही दाँतोंसे तड़ तड़ तोड़कर मांस खाने लगी और गन्नेको जैसे हथिनी पील डालती है, वैसे ही वह हड्डियोंको दाँतरूपी यंत्रका अतिथि बनाने लगी। मुनिके हृदयमें लेशमात्र भी ग्लानि-विकारवृत्ति-उत्पन्न नहीं हुई। उल्टे वे सोचने लगे कि यह स्त्री मुझको कर्मक्षय करनेमें सहायता दे रही है। इस विचारसे उनका शरीर रोमांचित हो आया । सुकोशल मुनि व्याघ्रीके भक्षण बन केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्षमें गये। उसी तरह कीर्तिधर मुनिनेभी केवल ज्ञान प्राप्त कर, अनुक्रमसे अद्वैत सुखके स्थानरूप परम पदको प्राप्त किया। नघुषराजाका सिंहिकाको त्यागना; पुनः ग्रहण करना । उधर सुकोशल राजाकी स्त्री चित्रमालाने एक कुलनंदन पुत्रको जन्म दिया। क्यों कि वह जन्महीसे राजा हुआ था इस लिए उसका नाम 'हिरण्यगर्भ' रक्खा गया। . जब वह युवक हुआ तब मृगावती नामा एक मृगाक्षीके साथ उसका ब्याह हो गया। हिरण्यगर्भके मृगावती रानीसे 'नघुष' नामका पुत्र हुआ। वह मानो दूसरा हिरण्यगर्भ ही था। ___ एक वार हिरण्यगर्भने अपने सिरपर, तीसरी वयकेबुढ़ापेके-जामिन समान सफेद बालको देखा। इससे तत्काल ही उसको वैराग्य हो गया । अतः उसने नघुषको राज्य
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy