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________________ हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन । १३१ आज्ञासे पापी सेवक हरिणीकी भाँति भयाकुल उस बालाको महेन्द्र नगरके समीप वाले जंगलमें छोड़ आये।" __यह सुनते ही कबूतरकी भाँति अपनी प्रियासे मिलनेको उत्सुक हो पवनंजय पवन वेगसे अपने सुसरालके नगरमें गया । मगर वहाँ भी उसको प्रिया न मिली। तब उसने एक स्त्रीसे पूछा:- यहाँ मेरी प्रिया आई थी या नहीं ?" ___ उस स्त्रीने उत्तर दियाः-" हाँ, वह अपनी दासी वसंततिलका सहित यहाँ आई थी; मगर उसपर व्यभिचारका दोष था, इस लिए उसको पिताने भी निकाल दिया।" वज्रकी चोटसे जैसे आघात लगता है, वैसा ही आघात दासीके वचनसे उसके हृदयमें लगा । वह वहाँसे प्रियाकी खोजमें रवाना हो गया और वन वनमें भटकने लगा। किसी भी स्थान पर जब अंजनाका पता नहीं लगा; तब शापभ्रष्ट देवकी भाँति उसने अपने मित्र प्रहसितसे कहा:-" हे मित्र ! तू मेरे मातापितासे कहना कि, सारी पृथ्वी छान डाली तो भी अबतक अंजनाका कहीं पता नहीं मिला। अव फिरसे वनमें जाकर उस बिचारीकी शोध करूँगा । यदि वह मिल जायगी तो ठीक है, अन्य-था मैं अग्निमें प्रवेश करूँगा।" पवनंजयके कहनेसे प्रहसित तत्काल ही आदित्यपुरमें
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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