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________________ हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन । १२७ प्राणीका रूप धारण कर उस सिंहको मार डाला । फिर वह अपना असली रूप धारण कर, अंजना और वसंततिलकाको प्रसन्न करनेके लिए, अपनी प्रिया सहित जिनगुणगायन करने लगा। उसके बाद उन्होंने उसका साथ नहीं छोड़ा। दोनों उसी गुफामें रहने लगी और वहीं मुनिसुव्रत प्रभुकी प्रतिमा स्थापन कर उसकी पूजा करने लगीं। अंजनाका अपने मामाके साथ जाना। ... समय आनेपर सिंहनी जैसे सिंहको जन्म देती है, वैसे ही चरणमें वज्र, अंकुश और चक्रके चिन्दवाले पुत्रको अंजनाने जन्म दिया । वसंतलिकाने हर्षित होकर, अन्न जलादि ला, उसका प्रसूति कर्म कराया। उस समय पुत्रको उत्संगमें-गोदमें-लेकर दुखी अंजना आँखोंमें आँसू भर, उस गुफाको रुलाती हुई विलाप करने लगी-" हे महात्मा पुत्र ! ऐसे घोर वनमें वेरा जन्म. होनेसे, मैं पुण्यहीना दीन स्त्री तेरा . जन्मोत्सव कैसे मनाऊँ ?" . इसको विलाप करती देखकर एक 'प्रतिसूर्य' नामा खेचरने उसके पास आकर, मीठे शब्दोंसे उसके दुःखका कारण पूछा. । दासी. वसंततिलकाने, आँखोंमें आँसू भरके, अंजनाके विवाहसे लेकर पुत्रजन्म तककी
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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