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________________ हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन । १२५ योंमें शिरोमणि था। उसके 'कनकोदरी' और ' लक्ष्मीवती' नामा दो पत्नियाँ थीं; उनमें लक्ष्मीवती अत्यंत श्रद्धालु श्राविका थी। वह अपने गृह-चैत्यमें रत्नमय जिनबिंब स्थापित कर दोनों समय-सुबे शाम-उनकी पूजा वंदना किया करती थी। . उससे कनकोदरी ईया रखती थी। उसने एकवार जिनबिंब चुराकर अपवित्र कचरेमें छिपा दिया। उस समय 'जयश्री' नामा एक आर्जिका-गुरणी-विहार करती हुई वहाँ आई। उसने कनकोदरीको प्रतिमा छिपाते हुए देख कर कहा:- हे भली स्त्री ! तूने यह क्या किया ? भगवतकी प्रतिमाको यहाँ डालकर, तूने अपने आत्माको संसारके अनेक दुःखोंका पात्र क्यों बनाया ?" जयश्री साध्वींकी बातसे कनकोदरीको पश्चात्ताप हुआ। उसने तत्काल ही प्रतिमाको वहाँसे निकाल लिया और शुद्ध कर, क्षमा माँग जिस स्थानसे लाई थी वहीं उसको वापिस ले जाकर रख दिया। उसी दिनसे वह सम्यक्त्व धारिणी बन जैन धर्म पालने लगी । अनुक्रमसे आयुष्य पूर्ण कर मृत्यु फा सौधर्म देवलोकमें देवी हुई । वहाँसे चवकर वह, महेंद्र राजाकी पुत्री अंजना-तेरी सखी-हुई है। इसने पहिले भवमें अर्हतकी प्रतिमाको दुःस्थानमें रक्खा था उसीका यह फल इसको मिला है। तू भी उस भवमें
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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