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________________ हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन ।' १२.१ अपने कुलको दूषित किया है । सर्पकी डसी हुई अंगुली को क्या बुद्धिमान काट नहीं डालते हैं ? " उस समय ' महोत्साह ' नामक मंत्री बोला:-" कन्या ओंको, जब उनकी सासुओंकी तरफसे दुःख मिलता है, तब उनके पितृ-गृहका ही उनको आश्रय मिलता है । हे प्रभो ! यह भी संभव है कि, उसकी सासूने क्रूर बन कर उस पर मिथ्या दोष लगाया हो और उसको घरसे निकाला हो । इस लिए जबतक उसका दोषी या निर्दोषी होना निश्चित न हो जाय, तबतक गुप्त रीतिस उसका पालन कीजिए; अपनी कन्या समझ कर उस पर इतनी कृपा कीजिए। " राजाने कहा :- " सासुएँ तो सभी जगह पर ऐसी ही हुआ करती हैं; मगर बहुओं का ऐसा चरित्र कहीं नहीं देखा गया । हम यह तो पहिले ही सुन चुके हैं कि, पवनंजय अंजनाको नहीं चाहता था; अंजनासे उसका स्नेह नहीं था | फिर पवनंजयसे उसके गर्भ रह जाना कैसे संभव है ? इस लिए वह सर्वथा दोषी है। उसकी सासूने अच्छा ही किया कि, उसको घरसे निकाल दिया । यहाँसे भी उसको इसी समय निकाल दो। मैं उसका मुँह भी - देखना नहीं चाहता । " राजाकी ऐसी आज्ञा पाते ही पहरेदारने अंजनाको वहाँसे निकाल दिया । अंजना दीन होकर आक्रंदन
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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