SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन । ११३ बिचारी अंजनाकी क्या अविवेकीको धिक्कार है हुई है; वह जरूर मरजादुर्मुख बनकर, मैं कहाँ नहीं देखा है, अफ्सोस ! उस दशा हुई होगी ? अरे ! मुझ जैसे वह विचारी मुझसे अपमानित यगी । उसकी हत्या पापसे जाऊँगा ? ' उसने अपने मित्र प्रहसितको बुलाकर सब हाल सुनाया । कहा है कि 'स्वदुःखाख्यानपात्रं नापरः सुहृदं विना । ' ( मित्रके विना अपने हृदयका दुःख जतलाने योग्य और कोई पात्र नहीं होता है। ) प्रहसित ने कहा :- " चिरकालके बाद भी सही बात अत्र तेरे समझमें आई सो अच्छा हुआ। मगर वह बाला वियोगिनी सारस - पक्षिणी की भाँति जीवित होगी या नहीं ? हे मित्र ! यदि वह जीवित हो, तो अब भी जाकर तुझे उसको आश्वासन देना चाहिए । अतः उसके पास जा; उससे मधुर संभाषण कर और उसकी आज्ञा लेकर, अपने का र्थ जानेके लिए वापिस लौट आ । "" अपने हृदयहीके समान भावीके विचार करनेवाले मित्रकी बातें सुन, उसकी प्रेरणासे उसको साथ ले, पचनंजय उड़कर, अंजनाके महलमें गया और छिपकर दर्वाजे पर खड़ा हो गया ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy