SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन । १०९ मगर हेमंतऋतुमें जैसे कोयल कभी नहीं बोलती है, वैसे. ही वह भी मौनका भंग नहीं करती थी। रावणकी सहायताके लिए पवनंजयका प्रयाण । इसी प्रकारसे रहते हुए बहुत दिन बीत गये । एकवार रावणके दूतने आकर प्रहलाद राजासे कहा:-" दुर्मति वरुण रावणके साथ हमेशा वैर रक्खा करता है और रावणके सामने सिर झुकाना स्वीकार नहीं करता है । जब उसको नमस्कार करनेके लिए कहा गया; तब उस अहंकारके गिरि, अनिष्ठ वचनोंके बोलनेवाले वरुणने अपने भुजदंडोंको देखते हुए कहा:-" अरे ! यह रावण कौन है ? यह क्या कर सकता है ? मैं इन्द्र, वैश्रवण, नलकूबर, सहस्रांशु, मरुत, यमराज या कैलाशगिरि नहीं हूँ। मैं वरुण हूँ। देवताधिष्ठित रत्नोंसे वह दुर्मति रावण यदि गर्विष्ठ हुआ हो, तो भले वह यहाँ आवे और अपनी शक्ति आजमावे । उसके चिरकालसे एकत्रित किये हुए गर्वको मैं क्षणवारमें नष्ट कर दूंगा।" ___ उसके ऐसे वचन सुन रावणको क्रोध आया । उसने उसी समय उस पर चढ़ाई कर दी और समुद्रकी वेलासमुद्रका चढ़ाव-जैसे किनारेके पर्वतको घेर लेता है, वैसे उसने उसके नगरको घेर लिया । तव वरुण भी क्रुद्ध होकर राजीव और पुंडरीक नामके अपने पुत्रों सहित नगरसे वाहिर निकला और
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy