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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૨ विहायोदितं ।। २ ॥ कुर्वाणाणुपदार्थदर्शनवशाद्भास्वत्यभायात्रपामानत्या जनकृतमोहरत मे शस्ताऽदरिद्रोहिका ॥ अक्षोभ्या तव भारती जिनपते मोन्मादिनां वादिनां । मानत्याजनकृत्तमोहरतमेश स्तादरिद्रोहिका ॥३॥ हस्तलंबितचूतलंबिलतिका यस्याननोऽभ्या. गम-द्विश्वासे वितताम्रपादपरता वाचा रिपुत्रासकृत ॥ सा भृति वितनोतु नोऽर्जुनरुचिः सिंहेऽधिरुढोल्लम-द्विश्वासे वितताम्रपादपरतावा चारिपुत्राऽसकृत् ॥४॥ ॥ अथ श्रीपार्श्वनाथ जिनस्तुतिः॥ स्त्रग्धरा वृत्तम् ॥ मालामालानबाहुर्दघददधदरं यामुदारा मुदारा-ल्लीना लीनामिहालीमधुरमधुरसा सूचितोमाचितो मा ॥ पातासातास पार्थो रुचिररुचिरदो देवराजीवराजी-पत्राऽपत्रा यदीया तनुरतनुरवो नंदको नोदको नो ॥ राजी राजीववका तरलतरलसत्केतुरंग तुरंग-गलव्यालग्नयोधाऽचितरचितरणे भीतिहृद्यातिहया ॥ सारा साराजिनानामलममलमते|धिकामाधिकामा-दव्यादव्याधि. शालाननजननजरात्रासमानाऽसमाना ॥२॥सद्योऽसद्योगभिवागमलगमलया जैनराजीनराजी-नूतानूतार्थयात्रीह ततहततमःपातकाs पातकामा ॥ शास्त्री शास्त्री नराणां हृदयहदयशोरोधिकाऽवाधिका चा-देया देयान्मुदं ते मनुजमनु जरां त्याजयंवी जयंति ॥ ३ ॥ याता या तारतेजाः सदसि सदसिभृत्कालकांतालकाता-पारि For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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