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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૯૩ बया । भन्वाणं जिणभत्तयाण अणिसं सोहिज्ज कज्जे रया ।। सम्मदिठि सुरवरा भरणभादीपंत देहप्पहा, ते संघस्स दवंतु विग्ध. हरणा कल्लाण संपायणा ॥ ४ ॥ ॥ श्री सिकाचल स्तुतिः ॥ ॥ स्वग्धरा वृत्तम् ।। आनन्दा नम्र कम्र त्रिदशपतिशिरः स्फारकोटी रकोटिः । खन्माणिक्यमाला मुचिरुचि लहरी धौतपादारविन्दं ॥ आय तीर्थाधिराज भुवन भवभृतां कर्ममर्मापहारं । वन्दे शर्बुजयाख्यं शितिघरकमला कण्ठश्रृंगारहारम् ॥ १॥ मायन्मोह द्विपेन्द्र राक रटि तटी पाटने पाटवं ये ॥ विभ्राणासौर्यसारा रुचिरतररुचा भूषणं योचितानाम् ।। सत्तानां सुचीनां प्रकटनपटयो मौक्तिकानां फलाना, तेऽमी कंठोरवाभा जगति जिनवरा विश्ववंद्या जयंति ॥ २॥ सदोषावन्ध्यबीजं सुगतिपथरथ श्रीसमाकृष्ट विद्या, रागद्वषो हिमन्त्र स्मर दवदवथु पानेणाम्बुवाहः जीयाज्जैनागमोऽयं निविडतरतम स्तोमतिग्मांशु बिम्ब, द्वीपः संसारसिन्धौ त्रिभुवनभवन: ज्ञेयवस्तुप्रदीपः ॥ ३ ॥ यः पूर्व तन्तुवायः कृत सुकृत लवैः पूरितं दुरितौधेः प्रत्यारव्यान प्रभावादमर मृगदशाभातिथेयं प्रयेदे ।। सेवा हेवा कशाली प्रथम जिन पदाम्भोजयोः तीर्थरक्षा, दक्षःश्री यक्षरान: स भवतु भविना विघ्नमी कपर्दिः ॥ ४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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