SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૮૫ ॥ पंचमी स्तुति ॥ ॥ शत्रुजय गिरि तीरथ सार ॥ ए देशी ॥ श्री जोन नेमि जिनेसर स्वामी, एकपने आराधो धामी, प्रभु पंचम गति पामी ॥ पंच रूप करे सुर सामी, पंच वरण कलश कटनामो, सवि मुरपति शिवकामी जन्म महोस्तव करे इन्द्र इन्द्रोणो, देव तणो ए करणी जाणो, भक्ति विशेष वखाणी।। नेमनी पंचमी तप कल्याणी, गुणपंजरी नरदत्तपरे प्राणो, करो भाव मन आणी ॥१॥ अष्टापद चोवीश निणंद, समेत शिखरे वीश धुमभविवंय, शत्रुजय आदि जिणंद।। उत्कष्टा सत्तरीसय जिगंदानवकोडी केवली शान दिणंद, नवकोडी सहम मुणिंद; संपति वीश निणंद सेाहावे, दोय कोडी केवलो नाम धरावे; दोय कोडी सह मुनि कहावे, ज्ञानपंचमी आराधे। भावे, नमो नाणस्स जपतां दुःख जावे, मनपंछित मुख थावे ॥२॥श्री जिनवाणो सिद्धान्ते वखाणो जोयण भूमि सुणे सवि पाणी। पीजीये सुधा समाणी। पंचमी एक विशेष वखाणी; अजु भालो सघलो ए जाणी, बोले केवल नाणो । जाजीव एकवर्षे करेवी.साभाग्य पंचपीनामे लेवी,प्रत्येक मासे आहेची। पंच बस्तु देहरे ढावी,एम साडापंच वर्ष करेवी, आगम वाणी सुवी।।३॥ सिंहगमनी सिंहलको विराजे, सिंहनाद परे गुहिर गाजे, वदन चंद परे छाजे । कटि मेखला नेउर मुधिराजे, पाये घुगरा घमघम बाजे, चालतो बहुत दिवाजे । गढ गिरनार तभी रखवाल, अंब For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy