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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ૩૮૩ मङ्गलम् ॥ ८॥ इत्थं श्री जिनमङ्गलाष्टकमिद कल्याणराटे तां पूर्वाहीहेऽपि महोत्सवेऽपि सततं श्रोसोपसम्पत्करं ॥ ये श्रृमनि पठन्ति तैश्च मनुधर्मार्थकामान्त्रिता लक्ष्मोरायते विपायरहिताः कुर्वन्तुने मङ्गलम् ॥ ॥ इति श्री मङ्गलाष्टकम् ॥ ॥ सोमन्धर प्रमुख विचरता जिननी स्तुति ॥ श्री सीमन्धर सेवित सुरवर, जिनवर जगजयकारीजो; धनुष्य पांचसे कंचनवरणी, मूरती मोहनगारीजी ॥ विचरंता प्रभु महाविदेहे, भविजनने हितकारीजी मह उठी नित्य नाम जपीजे, हृदयकमलमां धारीजी ॥१॥ सीमन्धर युगवाहु सुबाहु, सुजात स्वयंप्रम नामजी; अनन्त सूर विशाल बजेधर, चन्द्रानन अभिरामनी ॥ चन्द्र भुजंग ईश्वर नेमि प्रभ, वीरसेन गुणधामजी; महाभद्रने देव यशावली, अजित करूं प्रणामजी ॥ २ ॥ प्रभु मुख वाणी बहु गुणखाणी, मीठी अभीय समाणीनी; मूत्र अने अर्थे गुंथाणो, गणधरथी वीरवाणीजी । केवलनाणी बीन वखाणी, शिवपुरनी निशानीजी; उलट आणी दीलमांहे जागो, व्रत करो भवी पाणी जी ॥३॥ ५हेरी पटेली चरणां चोली, चालो चाल मरालीनी; अति रूपाली अधर माली, आखडली अगोयालोनी ॥ विन For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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